जब हम किसी से ओखला /जामियानगर से बाहर मिलते हैं और लोग हमसे पूछते हैं कि हम कहां रहते हैं तो हमारा जवाब होता है “ओखला” या फिर “जामियानगर”. हम पूछने वाले को अपने घर का पता नहीं देते बल्कि इलाक़े का नाम बताते हैं। यानि ओखला हमारी पहचान है। *यह हमारा बड़ा घर है*। हम ओखला से हैं और ओखला हमसे है।
पीछे से हम कहीं से भी हों, अब हम ओखला के वासी हैं। यही हमारा घर है और यही हमारी पहचान है। ए काश यह हमारी शान भी हो!
ओखला हमारी शान बन सकता है, अगर हम सब मिलकर कोशिश करें। जिस तरह हम अपने खरीदे हुए या किराए के घर को साफ-सुथरा रखते हैं, सजाते हैं, संवारते हैं और नाजायज़ कब्ज़े से बचाते हैं उसी तरह यह ज़रूरी है कि हम ओखला/जामियानगर को भी साफ-सुथरा रखें, इसे सजाएं-सवारें और यहाँ कुछ भी नाजायज़ होने से रोकें।
देहली में हम कहीं चले जाएं, जो अहसास हमें जुलैना/कालिंदी कुंज/अपोलो पहुंचते ही होता है वो कहीं नहीं होता है। अहसास घर के आने का, अहसास ख़ैरियत से पहुंचने का और अहसास अपनों में पहुंचने का।
आखिर ओखला को कब हम अपना वतन बनाएंगे, इसे सही माने में अपनाएंगे और इसे अपनी शान बनाएंगे?
आपका दिल क्या कहता है?